True Islam– Shia, Shiyat (SHEEYAT)

aap sabki duaao ka talib- Haider Alam Rizvi

तीसरी दुआ

हामेलाने अर्श और दूसरे मुक़र्रब फ़रिश्तों पर दुरूदो सलवात के सिलसिले में आप (अ0) की दुआः-

ऐ अल्लाह! तेरे अर्श के उठाने वाले फ़रिश्ते जो तेरी तस्बीह से उकताते नहीं हैं और तेरी पाकीज़गी के बयान से थकते नहीं और न तेरी इबादत से ख़स्ता व मलूल होते हैं और न तेरे तामीले अम्र में सई व कोशिश के बजाए कोताही बरतते हैं और न तुझसे लौ लगाने से ग़ाफ़िल होते हैं और इसराफ़ील (अ0) साहेबे सूर जो नज़र उठाए हुए तेरी इजाज़त और निफ़ाज़े हुक्म के मुन्तज़िर हैं ताके सूर फूंक कर क़ब्रों में पड़े हुए मुर्दों को होशियार करें और मीकाईल (अ0) जो तेरे यहाँ मरतबे वाले और तेरी इताअत की वजह से बलन्द मन्ज़िलत हैं और जिबरील (अ0) जो तेरी वही के अमानतदार और अहले आसमान जिनके मुतीअ व फ़रमाँबरदार हैं और तेरी बारगाह में मक़ामे बलन्द और तक़र्रूबे ख़ास रखते हैं और वह रूह जो फ़रिश्तगाने हिजाब पर मोक्किल है और वह रूह जिसकी खि़लक़त तेरे आलमे अम्र से है इन सब पर अपनी रहमत नाज़िल फ़रमा और इसी तरह उन फ़रिश्तों पर जो उनसे कम दरजा और आसमानों में साकिन और तेरे पैग़ामों के अमीन हैं और उन फ़रिश्तों पर जिनमें किसी सई व कोशिष से बद्दिली और किसी मशक़्क़त से ख़स्तगी व दरमान्दगी पैदा नहीं होती और न तेरी तस्बीह से नफ़सानी ख़्वाहिशें उन्हें रोकती हैं और न उनमें ग़फ़लत की रू से ऐसी भूल चूक पैदा होती है जो उन्हें तेरी ताज़ीम से बाज़ रखे। वह आँखें झुकाए हुए हैं के (तेरे नूरे अज़मत की तरफ़ निगाह उठाने का भी इरादा नहीं करते और ठोड़ियों के बल गिरे हुए हैं और तेरे यहाँ के दरजात की तरफ़ उनका इश्तियाक़ बेहद व बेनिहायत है और तेरी नेमतों की याद में खोए हुए हैं और तेरी अज़मत व जलाले किबरियाई के सामने सराफ़गन्दा हैं, और उन फ़रिश्तों पर जो जहन्नुम को गुनहगारों पर शोलावर देखते हैं तो कहते हैंः-    

पाक है तेरी ज़ात! हमने तेरी इबादत जैसा हक़ था वैसी नहीं की। (ऐ अल्लाह!) तू उन पर और फ़रिश्तगाने रहमत पर और उन पर जिन्हें तेरी बारगाह में तक़र्रूब हासिल है और तेरे पैग़म्बरों (अ0) की तरफ़ छिपी हुई ख़बरें ले जाने वाले और तेरी वही के अमानतदार हैं और उन क़िस्म-क़िस्म के फ़रिश्तों पर जिन्हें तूने अपने लिये मख़सूस कर लिया है और जिन्हें तस्बीह व तक़दीस के ज़रिये खाने पीने से बेनियाज़ कर दिया है और जिन्हें आसमानी तबक़ात के अन्दरूनी हिस्सों में बसाया है और उन फ़रिश्तों पर जो आसमानों के किनारों में तौक़ुफ़ करेंगे जबके तेरा हुक्म वादे के पूरा करने के सिलसिले में सादिर होगा। और बारिश के ख़ज़ीनेदारों और बादलों के हंकाने वालों पर और उस पर जिसके झिड़कने से राद की कड़क सुनाई देती है और जब इस डांट डपट पर गरजने वाले बादल रवाँ होते हैं तो बिजली के कून्दे तड़पने लगते हैं और उन फ़रिश्तों पर जो बर्फ़ और ओलों के साथ-साथ उतरते हैं और हवा के ज़ख़ीरों की देखभाल करते हैं और उन फ़रिश्तों पर जो पहाड़ों पर मोवक्किल हैं ताके वह अपनी जगह से हटने न पाएं और उन फ़रिश्तों पर जिन्हें तूने पानी के वज़न और मूसलाधार और तलातुम अफ़ज़ा बारिशों की मिक़दार पर मुतलेअ किया है और उन फ़रिश्तों पर जो नागवार इब्तिलाओं और ख़ुश आइन्द आसाइशों को लेकर अहले ज़मीन की जानिब तेरे फ़र्सतादा हैं और उन पर जो आमाल का अहाता करने वाले गरामी मन्ज़िलत और नेकोकार हैं और उन पर जो निगेहबानी करने वाले करामन कातेबीन हैं और मलके अमलूत और उसके आवान व अन्सार और मुनकिर नकीर और अहले क़ुबूर की आज़माइश करने वाले रूमान पर और बैतुलउमूर का तवाफ़ करने वालों पर और मालिक और जहन्नम के दरबानों पर और रिज़वान और जन्नत के दूसरे पासबानों पर और उन फ़रिश्तों पर जो ख़ुदा के हुक्म की नाफ़रमानी नहीं करते और जो हुक्म उन्हें दिया जाता है उसे बजा लाते हैं और उन फ़रिश्तों पर जो (आख़ेरत में) सलाम अलैकुम के बाद कहेंगे के दुनिया में तुमने सब्र किया (यह उसी का बदला है) देखो तो आख़ेरत का घर कैसा अच्छा है और दोज़ख़ के उन पासबानों पर के जब उनसे कहा जाएगा के उसे गिरफ़्तार करके तौक़ व ज़न्जीर पहना दो फिर उसे जहन्नुम में झोंक दो तो वह उसकी तरफ़ तेज़ी से बढ़ेंगे और उसे ज़रा मोहलत न देंगे।

और हर उस फ़रिश्ते पर जिसका नाम हमने नहीं लिया और न हमें मालूम है के उसका तेरे हाँ क्या मरतबा है और यह के तूने किस काम पर उसे मुअय्यन किया है और हवा, ज़मीन और पानी में रहने वाले फ़रिश्तों पर और उन पर जो मख़लूक़ात पर मुअय्यन हैं उन सब पर रहमत नाज़िल कर उस दिन के जब हर शख़्स इस तरह आएगा के उसके साथ एक हंकाने वाला होगा और एक गवाही देने वाला और उन सब पर ऐसी रहमत नाज़िल फ़रमा जो उनके लिये इज़्ज़त बालाए इज़्ज़त और तहारत बालाए तहारत का बाएस हो। ऐ अल्लाह! जब तू अपने फ़रिश्तों और रसूलों पर रहमत नाज़िल करे और हमारे सलवात व सलाम को उन तक पहुंचाए तो हम पर भी अपनी रहमत नाज़िल करना इसलिये के तूने हमें उनके ज़िक्रे ख़ैर की तौफ़ीक़ बख़्शी। बेशक तू बख़्शने वाला और करीम है।

Discussion

इस दुआ में इमाम अलैहिस्सलाम ने फ़रिश्तों और मला, आला के रहने वालों पर दुरूदो सलवात के सिलसिले में उनके औसाफ़ व इक़साम और मेज़ारज और तबक़ात का ज़िक्र फ़रमाया है और यह हक़ीक़त है के मलाएका के बारे में वही कुछ कह सकता है जिसकी निगाहें आलमे मलकूत की मन्ज़िलों से आशना हों। चुनान्चे इस सिलसिले में सबसे पहले जिसने तफ़सील से रोशनी डाली वह हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अलैहिस्सलात वस्सलाम हैं और इसके लिये आपके ख़ुतबात शाहिद हैं जिनमें मलाएका के सूर व इशकाले सिफ़ात व ख़ुसूसियात और अल्लाह से उनकी वालेहाना मोहब्बत व शीफ़्तगी और उनकी इबादत व दारफ़्तगी की मुकम्मल तस्वीरकशी की है। जिसकी नज़ीर न अगलों के कलाम में मिलती है न पिछलों के इस्लाम से क़ब्ल अगरचे कुछ अफ़राद ऐसे मौजूद थे जो हक़ाएक़ व मआरिफ़ से वाबस्तगी रखते थे। जैसे अब्दुल्लाह बिन सलाम, उमय्या इब्ने अबुलसलत, दरक़ा इब्ने नोफ़ल, क़लस बिन्दे साअद, अकशम इब्ने सैफ़ी वग़ैरा। मगर इस सिलसिले में वह ज़बान व क़लम को हरकत न दे सके और अगर कुछ कहते भी तो वह तर्ज़े बयान और कलाम पर इक़्तेदार उन्हें कहां नसीब था जो परवरदाए आग़ोशे नबूवत अमीरूल मोमेनीन (अ0) को हासिल था। और दूसरे अदबा व शोअराए अरब थे तो उनका मौज़ूए कलाम अमूमन घोड़ा, बैल, गाय, ऊँट वग़ैरा होता था या हर्ब व पैकार के ख़ूनी हंगामों और ख़ुदसेताई व तफ़ाख़ुर के तज़किरों पर मुश्तमिल होता था या उसमें बादोबारां के मनाज़िरे इश्क़ व मोहब्बत के वारदात और खण्डरों और वीरानों के निशानात  का ज़िक्र था और माद्दियात से बलन्दतर चीज़ों तक उनके ज़ेहनों की रसाई ही न थी के उनके मुताल्लिक़ वह कुछ कह सकते अगरचे वह फ़रिश्तों के वजूद के क़ायल थे मगर उन्हें ख़ुदा की चहेती और लाडली बेटियां तसव्वुर किया करते थे, चुनांचे क़ुराने मजीद में उनके ग़लत अक़ीदे का तज़किरा इस तरह हैः- फ़स तफ़तहुम..........शाहेदून ((ऐ रसूल (स0)! इनसे पूछो के क्या तुम्हारे परवरदिगार की बेटियां हैं और उनके बेटे हैं, क्या हमने फ़रिश्तों को तबक़ुन्नास से पैदा किया तो वह देख रहे थे।)

अमीरूल मोमेनीन अलैहिस्सलाम के बाद हज़रत अली बिन अलहुसैन अलैहिस्सलाम ने मलाएका के असनाफ़, उनके दरजात व मरातेब के तफ़ावत और उनके फ़राएज़ व मुज़ाहेरए उबूदियत पर तफ़सील से रोशनी डाली है।

मज़ाहेबे आलम में फ़रिश्तों के मुताल्लिक़ मुख़्तलिफ़ नज़रिये पाए जाते हैं। कुछ तो उन्हें नूर का मज़हर क़रार देते हैं और कुछ साद सितारों को मलाएका रहमत और नहस सितारों को मलाएकाए अज़ाब तसव्वुर करते हैं और कुछ का ख़याल है के वह अक़ूले मजरूह व नुफ़ूसे फ़लकिया हैं और कुछ का मजऊमा यह है के वह तबाए व क़वा हैं या देफ़ा व जज़्ब की क़ूवतें हैं। और फिर जो उन्हें किसी मुस्तक़िल हैसियत से मानते हैं उनमें भी इख़्तेलाफ़ात हैं के आया वह रूहानी महज़ हैं या जिस्मानी महज़ या जिस्म व रूह से मुरक्कब हैं, और अगर जिस्मानी हैं तो जिस्मे लतीफ़ रखते हैं या जिस्मे ग़ैर लतीफ़, और लतीफ़ हैं तो अज़ क़बीले नूर हैं या अज़ क़बीले हवा, या इनमें से बाज़ अज़ क़बीले नूर हैं और बाज़ अज़ क़बीले हवा। बहरहाल इनकी हक़ीक़त कुछ भी हो हमें यह अक़ीदा रखना लाज़िम है के वह अल्लाह की एक ज़ी अक़्ल मख़लूक़ हैं जो गुनाहों से बरी और अम्बिया व रसूल की जानिब इलाही एहकाम के पहचानने पर मामूर हैं, चुनांचे इन पर ईमान लाने के सिलसिले में क़ुदरत का इरशाद है-- आमनुर्रसूल.......... व मलाएकते  (हमारे) पैग़म्बर (स0) जो कुछ उन पर उनके परवरदिगार की तरफ़ से नाज़िल किया गया है उस पर ईमान लाए और मोमेनीन भी सब के सब ख़ुदा पर और उसके फ़रिश्तों पर ईमान लाए।

हज़रत (अ0) ने इस दुआ में दस फ़रिश्तों को नाम के साथ याद किया है जो यह हैं-  जिबरील (अ0), मीकाईल (अ0), इसराफ़ील (अ0), मलकुल मौत (इज़राईल) (अ0), रूह (अलक़ुद्स)(अ0),  मुन्किर (अ0), नकीर (अ0), रूमान (अ0), रिज़वान (अ0), मालिक (अ0)। इनमें पहले चार फ़रिश्ते जिनके नाम का आखि़री जुज़ ईल है जिसके मानी इबरानी या सुरयानी ज़बान में ‘‘अल्लाह’’ के होते हैं, सब मलाएका से अफ़ज़ल व बरतर हैं, और मीकाईल (अ0), के मुताल्लिक़ यह भी कहा गया है के यह कील से मुश्तक़ हैं जिसके मानी नापने के होते हैं और यह चूंके पानी की पैमाइश पर मुअय्यन हैं इसलिये इन्हें मीकाईल कहा जाता है। इस सूरत में उनके नाम का आखि़री जुज़ ईल मबनी ‘‘अल्लाह’ नहीं होगा। और रूह के मुताल्लिक़ मुख़्तलिफ़ रिवायात हैं बाज़ रिवायात से यह मालूम होता है के यह एक फ़रिश्ते का नाम है जो तमाम फ़रिश्तों से ज़्यादा क़द्र व मन्ज़िलत का मालिक है और बाज़ रिवायात से यह ज़ाहिर होता है के जिबरील (अ0) ही का दूसरा नाम रूह है और बाज़ रिवायात में यह है के रूह एक नौअ है जिसका कशीरूत्तादाद मलाएका पर इतलाक़ होता है और मुनकिर नकीर और रूमान क़ब्र के सवाल व जवाब से ताल्लुक़ रखते हैं। चुनान्चे रूमान, मुनकिर नकीर से पहले क़ब्र में आता है और हर आदमी को जांचता है और फिर मुनकिर व नकीर को उसकी अच्छाई या बुराई से आगाह करता है और रिज़वान जन्नत के पासबानों का उ0प्र0 राज्य सेतु निगम लि0 व रईस और मालिके जहन्नम के दरबानों का सरख़ील है जिनकी तादाद अनीस है। चुनांचे क़ुदरत का इरशाद है- ‘‘व अलैहा तसअता अश्र’’ जहन्नुम पर अनीस फ़रिश्ते मुक़र्रर हैं। उनके अलावा जब ज़ैल असनाफ़े मलाएका का तज़किरा फ़रमाया है-

1. हामेलाने अर्श - यह वह फ़रिश्ते हैं जो अर्शे इलाही को उठाए हुए हैं चुनांचे उनके मुताल्लिक़ इरशादे इलाही है - ‘‘अल्लज़ीना ............. बेहम्बे रब्बेहिम’’ (जो फ़रिश्ते अर्श को उठाए हुए हैं और जो उसके गिर्दागिर्द हैं, अपने परवरदिगार की तारीफ़ के साथ तस्बीह करते हैं।’’

2. मलाएकाए हजबः इससे मुराद वह फ़रिश्ते हैं जो इस आलमे अनवार व तजल्लियात से ताल्लुक़ रखते हैं जिसके गिर्द सरादक़ जलाल व हिजाबे अज़मत के पहले हैं और इन्सानी इल्म व इदराक से बालातर हैं।

3. मलाएकाए समावात- इससे मुराद वह फ़रिश्ते हैं जो तबक़ाते आसमानी में पाए जाते हैं, चुनान्चे क़ुदरत का इरशाद है - ‘‘व अना.......... शदीद......’’ (हमने आसमानों को टटोला तो उसे क़वी निगहबानों से भरा हुआ पाया।)

4. मलाएकाए रूहानेयीन- इससे मुराद वह फ़रिश्ते हैं जो आसमाने हफ़्तुम में हज़ीरतुल क़ुद्स के अन्दर मुक़ीम हैं और शबे क़द्र में ज़मीन पर उतरते हैं, चुनान्चे इरशादे इलाही है-  ‘‘तनज़्ज़लुल मलाएकतो............. कुल्ले अम्र’’ (इस रात फ़रिश्ते और रूह (अल क़ुद्स) हर बात का हुक्म लेकर अपने परवरदिगार की इजाज़त से उतरते हैं)

5. मलाएकाए मुक़र्रेबीन- यह वह फ़रिश्ते हैं जिन्हें बारगाहे इलाही में ख़ास तक़र्रूब हासिल है और उन्हें कर्रोबय्यन से भी याद किया जाता है जो कर्ब मबनी क़र्ब से माख़ोज है। इनके मुताल्लिक़ इरशादे क़ुदरत है - ‘‘लन यसतनकफ़................. मलाएकतल मुक़र्रबून’’ (मसीह अ0 को इसमें आर नहीं के वह अल्लाह का बन्दा हो और न उसके मुक़र्रब फ़रिश्तों को)

6. मलाएकाए रस्ल - यह वह फ़रिश्ते हैं जो पैग़ाम्बरी का काम अन्जाम देने पर मामूर हैं- चुनान्चे क़ुदरत का इरशाद है - ‘‘अल्हम्दो लिल्लाह.................. मलाएकतेरसला’’ (सब तारीफ़ उस अल्लाह के लिये जो आसमान व ज़मीन का बनाने वाला और फ़रिश्तों को अपना क़ासिद बनाकर भेजने वाला है’’

7. मलाएकए मुदब्बेरात - यह वह फ़रिश्ते हैं जो अनासिरे बसीत व एहसामे मुरक्कबा जैसे पानी, हवा, बर्क़, बादो बाराँ, रअद और जमादात व नबातात व हैवान पर मुक़र्रर हैं। चुनान्चे क़ुरआन मजीद में है ‘‘ फलमुदब्बेराते अमरन’’ (उन फ़रिश्तों की क़सम जो उमूरे आलम के इन्तेज़ाम में लगे हुए हैं) फिर इरशाद है- ‘‘वज़्ज़ाजेराते ज़जरन’’ (झिड़क कर डाँटने वालों की क़सम)। इब्ने अब्बास का क़ौल है के इससे वह फ़रिश्ते मुराद हैं जो बादलों पर मुक़र्रर हैं।

8. मलाएकाए हिफ़्ज़ा - यह वह फ़रिश्ते हैं जो अफ़रादे इन्सानी की हिफ़ाज़त पर मामूर हैं, चुनान्चे क़ुदरत का इरशाद है - ‘‘लह ...............अम्रिल्लाह’’ (इसके लिये इसके आगे और पीछे हिफ़ाज़त करने वाले फ़रिश्ते मुक़र्रर हैं जो ख़ुदा के हुक्म से उसकी हिफ़ाज़त व निगरानी करते हैं)

9. मलाएकए कातेबीन- वह फ़रिश्ते जो बन्दों के आमाल ज़ब्ते तहरीर में लाते हैं। चुनान्चे क़ुदरत का इरशाद है (जब वह कोई काम करता है तो दो लिखने वाले जो उसके दाएं, बाएं हैं लिख लेते हैं और वह कोई बात नहीं कहता मगर एक निगराँ उसके पास तैयार रहता है)

10. मलाएकए मौत- वह फ़रिश्ते जो मौत का पैग़ाम लाते और रूह को क़ब्ज़ करते हैं, चुनान्चे इरशादे इलाही है -( उन फ़रिश्तों की क़सम जो ढूब कर इन्तेहाई शिद्दत से काफ़िरों की की रूह खींच लेते हैं, और उनकी क़सम जो बड़ी आसानी से मोमिनों की रूह क़ब्ज़ करते हैं’’)

11. मलाएकाए ताएफ़ीन - वह फ़रिश्ते जो अर्श और अर्श के नीचे बैतुल मामूर का तवाफ़ करते रहते हैं चुनान्चे क़ुदरत का इरशाद है ‘‘वतरी..... अर्श’’ (तुम अर्श के गिर्दागिर्द फ़रिश्तों को घेरा डाले हुए देखोगे)

12. मलाएकाए हश्र- वह फ़रिश्ते जो मैदाने हश्र में इन्सानों को लाएंगे और उनके आमाल व अफ़आल की गवाही देंगे, चुनांचे क़ुदरत का इरशाद है - ‘‘वजाअत ................ शहीद’’ (और हर शख़्स हमारे पास आएगा और इसके साथ एक फ़रिश्ता हंकाने वाला और एक आमाल की शहादत देने वाला होगा)

13. मलाएकाए जहन्नुम -वह फ़रिश्ते जो दोज़ख़ की पासबानी पर मुक़र्रर हैं चुनांचे क़ुदरत का इरशाद है - ‘‘ अलैहा.................शद्ाद’’ (जहन्नुम पर वह फ़रिश्ते मुक़र्रर हैं जो तन्द ख़ू और तेज़ मिज़ाज हैं)

14. मलाएकाए बहिश्त- वह फ़रिश्ते जो जन्नत के दरवाज़ों पर मुक़र्रर हैं, चुनांचे क़ुदरत का इरशाद है - ‘‘हत्ता................................ ख़ालेदीन’’ (यहाँ तक के ज बवह जन्नत के पास पहुंचेंगे और उसके दरवाज़े खोल दिये जाएंगे और उसके निगेहबान उनसे कहेंगे सलाम अलैकुम तुम ख़ैर व ख़ूबी से रहे लेहाज़ा बहिश्त में हमेशा के लिये दाखि़ल हो जाओ)

यह वह असनाफ़े मलाएका हैं जिनका इस दुआ में तज़किरा है और इनके अलावा और कितने एक़साम व असनाफ़ हैं तो उनका अहाता अल्लाह के सिवा कौन कर सकता है - (तुम्हारे परवरदिगार के लश्करों को उसके अलावा कोई नहीं जानता)

चौथी दुआ

अम्बिया व ताबेईन और उन पर ईमान वालों के हक़ में हज़रत की दुआ

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम ऐ अल्लाह! तू अहले ज़मीन से रसूलों की पैरवी करने वालों और उन मोमेनीन को अपनी मग़फ़ेरत और ख़ुशनूदी के साथ याद फ़रमा जो ग़ैब की रू से उन पर ईमान लाए। उस वक़्त के जब दुश्मन उनके झुठलाने के दरपै थे और उस वक़्त के जब वह ईमान की हक़ीक़तों की रोशनी में उनके (ज़ुहूर के) मुश्ताक़ थे। हर उस दौर और हर उस ज़माने में जिसमें तूने कोई रसूल भेजा और वक़्त के लोगों के लिये कोई रहनुमा मुक़र्रर किया। हज़रत आदम (अ0) के वक़्त से लेकर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम के अहद तक जो हिदायत के पेशवा और साहेबाने तक़वा के सरबराह थे (उन सब पर सलाम हो) बारे इलाहा! ख़ुसूसियत से असहाबे मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम में से वह अफ़राद जिन्होंने पूरी तरह पैग़म्बर (स0) का साथ दिया और उनकी नुसरत में पूरी शुजाअत का मुज़ाहेरा किया और उनकी मदद पर कमरबस्ता रहे और उन पर ईमान लाने में जल्दी और उनकी दावत की तरफ़ सबक़त की, और जब पैग़म्बर (स0) ने अपनी रिसालत की दलीलें उनके गोशगुज़ार की ंतो उन्होंने लब्बैक कहा और उनका बोलबाला करने के लिये बीवी बच्चों को छोड़ दिया और अम्रे नबूवत के इस्तेहकाम के लिये बाप और बेटों तक से जंगें कीं और नबी-ए-अकरम (स0) के वजूद की बरकत से काम याबी हासिल की, इस हालत में के उनकी मोहब्बत दिल के हर रग व रेशे में लिये हुए थे और उनकी मोहब्बत व दोस्ती में ऐसी नफ़ा बख़्श तिजारत के मुतवक़्क़ो थे जिसमें कभी नुक़सान न हो। और जब उनके दीन के बन्धन से वाबस्ता हुए तो उनके क़ौम क़बीले ने उन्हें छोड़ दिया। और जब उनके सायए क़र्ब में सन्ज़िल की तो अपने बेगाने हो गए। तो ऐ मेरे माबूद! उन्होंने तेरी ख़ातिर और तेरी राह में जो सब को छोड़ दिया तो (जज़ा के मौक़े पर) उन्हें फ़रामोश न कीजो और उनकी इस फ़िदाकारी और ख़ल्क़े ख़ुदा को तेरे दीन पर जमा करने और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम के साथ दाई हक़ बन कर खड़ा होने के सिले में उन्हें अपनी ख़ुशनूदी से सरफ़राज़ व शाद काम फ़रमा और उन्हें इस अम्र पर भी जज़ा दे के उन्होंने तेरी ख़ातिर अपने क़ौम क़बीले के शहरों से हिजरत की और वुसअते मआश से तंगीए मआश में जा पड़े और यूं ही उन मज़लूमों की ख़ुशनूदी का सामान करके जिनकी तादाद को तूने अपने दीन को ग़लबा देने के लिये बढ़ाया बारे इलाहा! जिन्होंने असहाबे रसूल (स0) की अहसन तरीक़ से पैरवी की उन्हें बेहतरीन जज़ाए ख़ैर दे जो हमेशा यह दुआ करते रहे के ‘‘ऐ हमारे परवरदिगार! तू हमें और हमारे उन भाइयों को बख़्श दे जो ईमान लाने में हमसे सबक़त ले गये’’ और जिनका सतहे नज़र असहाब का तरीक़ रहा और उन्हीं का तौर तरीक़ा इख़्तेयार किया औन उन्हीं की रविश पर गामज़न हुए। उनकी बसीरत में कभी शुबह का गुज़र नहीं हुआ के उन्हें (राहे हक़ से) मुन्हरिफ़ करता और उनके नक़शे क़दम पर गाम फ़रमाई और उनके रौशन तर्ज़े अमल की इक़्तेदार में उन्हीं की शक व तरद्दुद ने परेशान नहीं किया वह असहाबे नबी (स0) के मआवुन व दोस्तगीर और दीन में उनके पैरोकार और सीरत व इख़लाक़ में उनसे दर्स आमोज़ रहे और हमेशा उनके हमनवा रहे और उनके पहँुचाए हुए एहकाम में उन पर कोई इल्ज़ाम न वुसरा।   बारे इलाहा! उन ताबेईन और उनकी अज़वाज और आल व औलाद और उनमें से जो तेरे फ़रमाँबरदार व मुतीअ हैं उनपर आज से लेकर रोज़े क़यामत तक दूरूद व रहमत भेज। ऐसी रहमत जिसके ज़रिये तू उन्हें मासियत से बचाए। जन्नत के गुलज़ारों में फ़राख़ी व वुसअत दे। शैतान के मक्र से महफ़ूज़ा रखे और जिस कारे ख़ैर में तुझसे मदद चाहें उनकी मदद करे और शब व रोज़ के हवादिस से सिवाए किसी नवीदे ख़ैर के इनकी निगेहदाश्त करे और इस बात पर उन्हें आमादा करे के वह तुझसे हुस्ने उम्मीद का अक़ीदा वाबस्ता रखें और तेरे हाँ की नेमतों की ख़्वाहिश करें और बन्दों के हाथों में फ़राख़ी नेमत को देखकर तुझ पर (बे इन्साफ़ी का) इल्ज़ाम न धरें ताके उनका रूख़ अपने उम्मीद व बीम  की तरफ़ फेर दे और दुनिया की वुसअत व फ़राख़ी से बे तअल्लुक़ कर दे और अमले आख़ेरत और मौत के बाद की मन्ज़िल का साज़ व बर्ग मुहय्या करना उनकी निगाहों में ख़ुश आईन्द बना दे और रूहों के जिस्मों से जुदा होने के दिन हर कर्ब व अन्दोह जो उन पर वारिद हो आसान कर दे और फ़ित्ना व आज़माईश से पैदा होने वाले ख़तरात और जहन्नुम की शिद्दत और इसमें हमेशा पड़े रहने से निजात दे और उन्हें जा-ए अमन की तरफ़ जो परहेज़गारों की आसाइशगाह है, मुन्तक़िल कर दे।

हज़रत ने इस दुआ में सहाबा व ताबेईन बिलएहसान और साबेक़ीन बिल ईमान  के लिये कलेमात तरहम इरशाद फ़रमाए हैं और हस्बे इरशादे इलाही के अहले ईमान गुज़रे हुए अहद के मोमेनीन के लिये दुआ करते हुए कहते हैं के ‘‘रब्बेनग़ फ़िरलना .............बिल ईमान’’। ऐ हमारे परवरदिगार! तू हमें और हमारे उन भाईयों को बख़्श दे जो ईमान लाने में हमसे सबक़त ले गये’’ उनके लिये दुआए अफ़ो व मग़फ़ेरत फ़रमाते हैं। इमाम अलैहिस्सलाम के तर्ज़े अमल और इस आयाए क़ुरानी से हमें यह दर्स हासिल होता है के जो मोमेनीन रहमते इलाही के जवार में पहुंच चुके हैं उनके लिये हमारी ज़बान से कलेमाते तरह्हम निकलें और उनकी सबक़ते ईमानी के पेशे नज़र उनके लिये दुआए मग़फ़ेरत करें और यह हक़ीक़त भी वाज़ेह हो जाती है के ईमान में सबक़त हासिल करना भी फ़ज़ीलत का एक बड़ा दरजा है। तो इस लिहाज़ से सबक़त ले जाने वालों में सबसे ज़्यादा फ़ज़ीलत का हामिल वह होगा जो उन सबसे साबिक़ हो और यह मुसल्लेमए अम्र है के सबसे पहले ईमान में सबक़त करने वाले अमीरूल मोमेनीन अली (अ0) इब्ने अबी तालिब अलैहिस्सलाम थे। चुनांचे इब्ने अब्दुल बरीकी ने तहरीर किया है--

’’रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम के बाद जो सबसे पहले अल्लाह तआला पर ईमान लाया वह अली इब्ने अबी तालिब अलैहिस्सलाम थे’’
ख़ुदावन्दे आलम ने अपने इरशाद - ‘‘ऐ हमारे परवरदिगार! तू हमें और हमारे उन भाईयों को जो ईमान में हमसे साबिक़ थे बख़्श दे, की रू से हर मुसलमान पर अपने कलाम में यह फ़रीज़ा आयद कर दिया है के वह अली (अ0) इब्ने अबी तालिब अलैहिस्सलाम के लिये दुआए मग़फ़ेरत व रहमत करता रहे। लेहाज़ा हर वह शख़्स जो अली (अ0) इब्ने अबी तालिब अलैहिस्सलाम के बाद ईमान लाए वह आप (अ0) के हक़ में दुआए मग़फ़ेरत करे। (शरह इब्ने अबी अल हदीद जि0 3, स0 256)

बहरहाल जिन सहाबा और साबेक़ीन बिल ईमान का इस दुआ में तज़किरा है वह असहाब थे जिन्होंने मरहले पर फ़िदाकारी के जौहर दिखाए, बातिल की ताग़ूती क़ूवतों के सामने सीना सिपर रहे।  रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम के असवए हुस्ना के सांचे में अपनी ज़िन्दगियों को ढाल के दूसरों के लिये मिनारे हिदायत क़ायम कर गए और जादहो हक़ की निशानदेही और इस्लाम की सही तालीमात की तरफ़ रहनुमाई करते रहे, दीन की ख़ातिर हर क़ुर्बानी पर आमादा नज़र आये। क़ौम क़बीले को छोड़ा। बीवी बच्चों से मुंह मोड़ा, घर से बेघर हुए, जंग की शाद फ़िशानियों में तलवारों के वार सहे और सब्रो इस्तेक़लाल के साथ दुश्मन के मुक़ाबले में जम कर लड़े, जिससे इस्लाम इनका दहीने मन्नत और अहले इस्लाम इनके  ज़ेरे एहसान हैं क्या सलमान, अबूज़र, मिक़दाद, अम्मार इब्ने यासिर, ख़बाब इब्ने अरत, बिलाल इब्ने रबाह, क़ैस इब्ने सअद, जारिया इब्ने क़दामा, हज्र इब्ने अदमी, हज़ीफ़ा इब्ने अलयमान, हुन्ज़ला इब्ने नामान, ख़ज़ीमा इब्ने साबित, अहनफ़ इब्ने क़ैस, अम्रो इब्ने अलहमक़, उस्मान बिन हनीफ़ ऐसे जलील अलक़द्र सहाबा को अहले इस्लाम फ़रामोश कर सकते हैं जिनकी जान फ़रोशाना खि़दमात के तज़किरों से तारीख़ का दामन छलक रहा है।

यह ज़ाहिर है के यह दुआ अहदे नबवी (स0) के तमाम मुसलमानों को शामिल नहीं है क्योंके इनमें ऐसे भी थे जो बन्से क़ुरानी फ़ासिक़ थे जैसे वलीद इब्ने अक़बा। ऐसे भी थे जिन्हें पैग़म्बर (स0) ने फ़ित्ना परवरी व शरअंगेज़ी की वजह से शहर बदर कर दिया गया था जैसे हकम इब्ने आस और उसका बेटा मरवान। ऐसे भी थे जिन्होंने महज़ हुसूले इक़्तेदार व तलब व जाह के लिये अहलेबैत (अ0) रसूल (स0) से जंगें कीं। जैसे माविया, अम्रो इब्ने आस, बसर इब्ने अबी इरतात, जीब इब्ने मुसलमह, अम्रो इब्ने सअद वग़ैरह। ऐसे भी थे जो पैग़म्बर (स0) को मस्जिद में तन्हा छोड़कर अलग हो जाते थे। चुनांचे इरशादे बारे हैः- ‘‘वएज़ा ........................... क़ाएमन’’ (यह वह हैं के जब कोई तिजारत या बेहूदगी की बात देखते हैं तो उसकी तरफ़ टूट पड़ते हैं और तुमको खड़ा हुआ छोड़ जाते हैं)  और ऐसे भी थे जिनके दिमाग़ों में जाहेलीयत की बू बसी हुई थी और पैग़म्बर (स0) अकरम की रेहलत के बाद अपनी साबेक़ा सीरत की तरफ़ पलट गए, चुनांचे मुहम्मद इब्ने इस्माईल बुख़ारी यह हदीस तहरीर करते हैं-

‘‘फ़रमाया के क़यामत के दिन मेरे असहाब की एक जमाअत मेरे पास आएगी। जिसे हौज़े कौसर से हटा दिया जाएगा। मैं इस मौक़े पर कहूंगा के ऐ मेरे परवरदिगार। यह तो मेरे हैं इरशाद होगा के तुम्हें ख़बर नहीं है के इन्होंने तुम्हारे बाद दीन में क्या क्या बिदअतें कीं। यह तो उलटे पाँव अपने साबेक़ा मज़हब की तरफ़ पलट गए थे।’’  (सही बुख़ारी बाबुल हौज़)

इन हालात में उन सबके मुताल्लिक़ हुस्ने अक़ीदत रखना और उन सबको एक सा आदिल क़रार दे लेना एक तक़लीदी अक़बेदत का नतीजा तो हो सकता है मगर वाक़ेआत व हक़ाएक़ की रौशनी में परखने के बाद इस अक़ीदे पर बरक़रार रहना बहुत मुश्किल है। आखि़र एक होशमन्द इन्सान यह सोचने पर मजबूर होगा के पैग़म्बर (स0) के रेहलत फ़रमाते ही यह एकदम इन्क़ेलाब कैसे रूनुमा हो गया के उनकी ज़िन्दगी में तो उनके मरातिब व दरजात, में इम्तियाज़ हो और अब सबके सब एक सतह पर आकर आदिल क़रार पा जाएं और उन्हें हर तरह के नक़्द व जिरह से बालातर समझते हुए अपनी अक़ीदत का मरकज़ बना लिया जाए। आखि़र क्यों? बेशक बैअत रिज़वान के मौक़े पर अल्लाह तआला ने उनके मुताल्लिक़ अपनी ख़ुशनूदी का इज़हार किया चुनांचे इरशादे इलाही है- ‘‘लक़द ...................... शजरता’’ (जिस वक़्त ईमान लाने वाले तुमसे दरख़्त के नीचे बैअत कर रहे थे तो ख़ुदा उनकी इस बात से ज़रूर ख़ुश हुआ) - तो इस एक बात से ख़ुशनूद होने के मानी यह नहीं होंगे के बस अब उनका हर अमल और हर एक़दाम रज़ामन्दी ही का तर्जुमान होगा और अब वह जो चाहें करें यह ख़ुशनूदी उनके शरीके हाल ही रहेगी, और फिर यह के ख़ुदा वन्दे आलम ने इस आयत में अपनी रज़ामन्दी को सिर्फ़ बैअत से वाबस्ता नहीं किया बल्कि बैअत और ईमान दोनों के मजमूए से वाबस्ता किया है। लेहाज़ा यह रज़ामन्दी सिर्फ़ उनसे मुताल्लिक़ होगी जो दिल से ईमान लाए हों। और अगर कोई मुनाफ़िक़त के साथ इज़हारे इस्लाम करके बैअत करे तो उससे रज़ामन्दी का ताअल्लुक़ साबित नहीं होगा। और फिर जहां यह रज़ामन्दी साबित हो वहाँ यह कहाँ ज़रूरी है के वह बाक़ी व बरक़रार रहेगी। क्योंके यह ख़ुशनूदी तो इस मुआहेदे पर मबनी थी के वह दुश्मन के मुक़ाबले में पैग़म्बर (स0) अकरम का साथ नहीं छोड़ेंगे और जेहाद के मौक़े पर जम कर हरीफ़ का मुक़ाबला करेंगे। तो अगर वह इस मुआहेदे के तक़ाज़ों को नज़रअन्दाज़ करके मैदान से मुंह मोड़ लें और बैअत के मातहत किये हुए क़ौल व क़रार को पूरा न करें तो यह ख़ुशनूदी कहां बाक़ी रह सकती है। और वाक़ेआत यह बताते हैं के इनमें से ऐसे अफ़राद भी थे जिन्होंने इस मुआहेदे को दरख़ोरे अक़ना नहीं समझा और हिमायते पैग़म्बर (स0) के फ़रीज़े को नज़रअन्दाज़ कर दिया। चुनांचे जंगे हनीन इसकी शाहिद है के जो इस्लाम की आखि़री जंग थी। अगरचे इसके बाद ग़ज़वए ताएफ़ व ग़ज़वए तबूक पेश आया। मगर इन गज़वों में जंग की नौबत नहीं आई। इस आखि़री मारेके में मुसलमानों की तादाद चार हज़ार से ज़्यादा थी जो दुश्मन की फ़ौज से कहीं ज़्यादा थी मगर इतनी बड़ी फ़ौज में से सिर्फ़ सात आदमी निकले जो मैदान में जमे रहे और बाक़ी दुश्मनों के मुक़ाबले में छोड़कर चले गये। चुनांचे क़ुरान मजीद है- ‘‘वज़ाक़त .............. मुदब्बेरीन’’ (ज़मीन अपनी वुसअत के बावजूद तुम पर तंग हो गई फिर तुम पीठ फिराकर चल दिये यह कोई और न थे बल्कि वही लोग थे जो बैअते रिज़वान में शरीक थे) चुनांचे पैग़म्बर (स0) ने इस मुआहेदे का ज़िक्र करते हुए अब्बास (र0) से फ़रमाया - ‘‘उन दरख़्त के नीचे बैअत करने वाले मुहाजिरों को पुकारो और उन पनाह देने वाले और मदद करने वाले अन्सार को ललकारो’’

क्या इस मौक़े पर यह तसव्वुर किया जा सकता है के अल्लाह की ख़ुशनूदी उनके शामिले हाल रही होगी, हरगिज़ नहीं, क्योंके वह ख़ुशनूदी तो सिर्फ़ मुआहेदे से वाबस्ता थी और जब इस मुआहेदे की पाबन्दी न की जा सकी तो ख़ुशनूदी के क्या मानी, और बैअते रिज़वान में शामिल होने वाले भी यह समझते थे के अल्लाह की ख़ुशनूदी बशर्ते इस्तवारी ही बाक़ी रह सकती थी, चुनांचे मोहम्मद इब्ने इस्माईल बुख़ारी तहरीर करते हैं -हिलाल इब्ने मुसय्यब अपने बाप से रिवायत करते हैं के उन्होंने कहा के मैंने बरा इब्ने आज़िब से मुलाक़ात की और उनसे कहा के ख़ुशानसीब तुम्हारे के तुम नबी (स0) की सोहबत में रहे और दरख़्त के नीचे उनके हाथ पर बैअत की। फ़रमाया के ऐ बरादर ज़ादे। तुमने नहीं जानते के हमने उनके बाद क्या-क्या बिदअतें पैदा कीं’’ (सही बुख़ारी जि0 3- सफ़ा 30) लेहाज़ा महज़ सहाबियत कोई दलीले अदालत है और न बैअते रिज़वान से उनकी अदालत पर दलील लाई जा सकती है।

पांचवी दुआ अपने लिये और अपने दोस्तों के लिये हज़रत की दुआः-

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम — ऐ वह जिसकी बुज़ुर्गी व अज़मत के अजाएब ख़त्म होने वाले नहीं। तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमें अपनी अज़मत के परदों में छुपाकर कज अन्देशियों से बचा ले। ऐ वह जिसकी शाही व फ़रमाँरवाई की मुद्दत ख़त्म होने वाली नहीं तू रहमत नाज़िल कर मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और हमारी गर्दनों को अपने ग़ज़ब व अज़ाब (के बन्धनों) से आज़ाद रख। ऐ वह जिसकी रहमत के ख़ज़ाने ख़त्म होने वाले नहीं। रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और अपनी रहमत में हमारा भी हिस्सा क़रार दे। ऐ वह जिसके मुशाहिदे से आँखें क़ासिर हैं, रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और अपनी बारगाह से हमको क़रीब कर ले। ऐ वह जिसकी अज़मत के सामने तमाम अज़मतें पस्त व हक़ीर हैं, रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और हमें अपने हाँ इज़्ज़त अता कर। ऐ वह जिसके सामने राज़हाए सरबस्ता ज़ाहिर हैं रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और हमें अपने सामने रूसवा न कर। बारे इलाहा! हमें अपनी बख़्शिश व अता की बदौलत बख़्शिश करने वालों की बख़्शिश से बेनियाज़ कर दे और अपनी पोस्तगी के ज़रिये क़तअ ताअल्लुक़ करने वालों की बेताअल्लुक़ी व दूरी की तलाफ़ी कर दे ताके तेरी बख़्शिष व अता के होते हुए दूसरे से सवाल न करें और तेरे फ़ज़्ल व एहसान के होते हुए किसी से हरासाँ न हों। ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमारे नफ़े की तदबीर कर और हमारे नुक़सान की तदबीर न कर और हमसे मक्र करने वाले दुश्मनों को अपने मक्र का निशाना बना और हमें उसकी ज़द पर न रख। और हमें दुश्मनों पर ग़लबा दे, दुश्मनों को हम पर ग़लबा न दे। बारे इलाहा! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमें अपने नाराज़गी से महफ़ूज़ रख और अपने फ़ज़्ल व करम से हमारी निगेहदाश्त फ़रमा और अपनी जानिब हमें हिदायत कर और अपनी रहमत से दूर न कर के जिसे तू अपनी नाराज़गी से बचाएगा वही बचेगा। और जिसे तू हिदायत करेगा वही (हक़ाएक़ पर) मुत्तेलअ होगा और जिसे तू (अपनी रहमत से) क़रीब करेगा वही फ़ायदे में रहेगा। ऐ माबूद! तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमें ज़माने के हवादिस की सख़्ती और शैतान के हथकण्डों की फ़ित्ना अंगेज़ी और सुलतान के क़हर व ग़लबे की तल्ख़ कलामी से अपनी पनाह में रख। बारे इलाहा! बेनियाज़ होने वाले तेरे ही कमाले क़ूवत व इक़्तेदार के सहारे बे नियाज़ होते हैं। रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और हमें बेनियाज़ कर दे और अता करने वाले तेरी ही अता व बख़्शिश के हिस्सए दाफ़र में से अता करते हैं। रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और हमें भी (अपने ख़ज़ानए रहमत से) अता फ़रमा। और हिदायत पाने वाले तेरी ही ज़ात की दर की दरख़्शिन्दगियों से हिदायत पाते हैं। रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और हमें हिदायत फ़रमा। बारे इलाहा! जिसकी तूने मदद की उसे मदद न करने वालों का मदद से महरूम रखना कुछ नुक़सान नहीं पहुंचा सकता और जिसे तू अता करे उसके हाँ रोकने वालों के रोकने से कुछ कमी नहीं हो जाती। और जिसकी तू ख़ुसूसी हिदायत करे उसे गुमराह करने वालों का गुमराह करना बे राह नहीं कर सकता। रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और अपने ग़लबे व क़ूवत के ज़रिये बन्दों (के शर) से हमें बचाए रख और अपनी अता व बख़्शिश के ज़रिये दूसरों से बेनियाज़ कर दे और अपनी रहनुमाई से हमें राहे हक़ पर चला। ऐ माबूद! तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमारे दिलों की सलामती अपनी अज़मत की याद में क़रार दे और हमारी जिस्मानी फ़राग़त (के लम्हों) को अपनी नेमत के शुक्रिया में सर्फ़ कर दे और हमारी ज़बानों की गोयाई को अपने एहसान की तौसीफ़ के लिये वक़्फ़ कर दे ऐ अल्लाह! तू रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और हमें उन लोगों में से क़रार दे जो तेरी तरफ़ दावत देने वाले और तेरी तरफ़ का रास्ता बताने वाले हैं और अपने ख़ासुल ख़ास मुक़र्रेबीन में से क़रार दे ऐ सब रहम करने वालों से ज़्यादा रहम करने वाले।

यह दुआ जिसकी इब्तिदा अज़मते इलाही के तज़किरे से है बन्दों को अल्लाह की अज़मत व रिफ़अत के आगे झुकने और सिर्फ़ उसी से सवाल करने की तालीम देती है। अगर इन्सान हर दरवाज़े से अपनी हाजतें वाबस्ता करेगा तो यह चीज़ इज़्ज़ते नफ़्स व ख़ुददारी के मनाफ़ी होने के अलावा ज़ेहनी इन्तेशार का बाएस बन कर उसे हमेशा परेशानियों और उलझनों में मुब्तिला रखेगी और जो शख़्स क़दम-क़दम पर दूसरों का सहारा सहारा ढूंढता है और हर वक़्त यह आस लगाए बैठा है के यह मक़सद फ़लाँ से पूरा होगा और यह काम फ़लाँ शख़्स के ज़रिये अन्जाम पाएगा तो कभी किसी की चौखट पर झुकेगा और कभी किसी के आस्ताने पर सरे नियाज़ ख़म करेगा, कभी किसी से तवक़्क़ो रखेगा और कभी किसी से उम्मीद बांधेगा। कहीं मायूसी का सामना होगा कहीं ज़िल्लत का और नतीजे में ज़ेहन मुनतशिर और ख़यालात परागन्दा हो जाएंगे। न सूकूने क़ल्ब नसीब होगा न ज़ेहनी यकसूई हासिल होगी और उसकी तमाम उम्मीदों, आरज़ूओं और हाजतों का एक ही महवर हो तो वह अपने को इन्तेशारे ज़ेहनी से बचा ले जा सकता है। उसे यूँ समझना चाहिये के अगर कोई शख़्स छोटी-छोटी रक़मों का बहुत से आदमियों का मक़रूज़ हो और सुबह से शाम तक उसे मुख़्तलिफ़ क़र्ज़ ख़्वाहों से निमटना पड़ता हो तो वह यह चाहेगा के मुताअद्दद आदमियों का मक़रूज़ होने के बजाए एक ही आदमी का मक़रूज़ हो। अगरचे उससे क़़र्ज़े की मिक़दार में कमी वाक़े नहीं होगी मगर मुताअद्दद क़र्ज़ ख़्वाहों के तक़ाज़ों से तो बच जाएगा। अब तक़ाज़ा होगा तो एक का और ज़ेरबारी होगी तो एक की। और अगर यह मालूम हो के वह क़र्ज़ ख़्वाह या वह तक़ाज़ा करने वाला नहीं है और न होने की सूरत में दरगुज़र करने वाला भी है तो उससे ज़ेहनी बार और हलका हो जाएगा। इसी तरह अगर कोई अपनी हाजतों और तलबगारियों का एक ही मरकज़ क़रार दे ले और सिर्फ़ उसी से अपने तवक़्क़ोआत वाबस्ता कर ले और तमाम मुतफ़र्रिक़ व पाशाँ और नाक़ाबिले इत्मीनान मरकज़ों से रूख़ मोड़ ले तो उसके नतीजे में ज़ेहनी आसूदगी हासिल कर सकता है और दिल व दिमाग़ को परेशान ख़याली से बचा ले जा सकता है। गोया के वह मुताअद्दद क़र्ज़ख़्वाहों के चंगुल से छूटकर अब सिर्फ़ एक का ज़ेरेबार और हलक़ा बगोश है।-

 ‘‘इक दर पे बैठ गर है तवक्कल करीम पर,, अल्लाह के फ़क़ीर को फेरा न चाहिये’’

इस दुआ में हर जुमले के बाद दुरूद की तकरार इस्तेजाबते दुआ के लिये है क्योंके दुआ में मोहम्मद (स0) व आले मोहम्मद (अ0) पर दुरूद भेजना इस्तेजाबते दुआ का ज़िम्मेदार और इसकी मक़बूलियत का ज़ामिन है और वह दुआ जिसका तकमिला दुरूद न हो वह बाबे क़ुबूलियत तक नहीं पहुंचती। चुनांचे इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम का इरशाद हैः-  ‘‘दुआ उस वक़्त तक रूकी रहती है जब तक मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर दुरूद न भेजा जाए’’।